यह कविता एक साधारण लड़की मीरा के बारे मे प्रस्तुत की गई है। वह अपने पति के लौटने की कामना करती है जो सेना में था और एक वर्ष पूर्व शहीद हो गया था।
प्रस्तावना
मीरा के आंसू पलकों तक आकर रुक जाते हैं। बसेरे से काग निकलते हुए जब अपनी प्यार की तरफ देखकर भरे हुए नैनों से अर्ज करता है कि “पुकार मुझे”, ठीक उसी तरह उन गहरे सन्नाटों में उसका दिल भी एक आवाज़ टटोल रहा था। बढ़ती हुई तन्हाई, उसकी आशाओं को जागृत कर देता है। दर्द उसकी ज़ुबान पर आते हुए शब्दों में बिखर जाते हैं।
कविता
धुन्ध की आड़ में मंज़िल से दूर हो गई
बस्ती थी शोर में चलती हुई राहें बदल गई,
.
नादान थी ज़िन्दगी, आरज़ू की कमी थी
बदलते वक्त के सांसों की रंजिश थी,
.
सौदागर मिलने की आस की क्यों
शोर में भी धड़कते दिल की प्यास क्यों,
.
तेरे एहसास का पैगाम धुंधलाता चला गया
मैं खड़ी रही किनारे तू आगे निकल गया,
.
अकेली हूँ मैं, खोने का डर सताता है
भरे नैना बहते हुए तेरी याद दिलाता है,
.
क्यों इस तन्हाई में भी तेरी आहटें होती है
दिल के दर पर आज भी तेरी शिकायते होती है,
.
वीरान पड़ी मेरी ज़िन्दगी किसी की कशिश में
आस लगी है हासिल करने की इस शोर में।।